Barsana

नंदगांव से 8 किमी दूर बरसाना गांव स्थित है। बरसाना गांव नाम होने का कारण – श्री वृषभानु महाराज जी, श्री नन्द महाराज जी अत्यंत स्नेह करते थे। श्री नंद महाराज जब गोकुल में निवास कर रहे थे। तब वृषभानु महाराज गोकुल के निकट रावल गाँव में निवास कर रहे थे। श्री नंद महाराज जब श्री कृष्ण की सुरक्षा के लिए गोकुल से यमुना नदी पार कर नंदगाँव में आकर निवास करने लगे थे। यह सुनकर श्री वृषभानु महाराज भी रावल गाँव से आकर नंदगाँव निवास करने लगे थे।

Description

श्री बरसाना गांव

नंदगांव से 8 किमी दूर बरसाना गांव स्थित है। बरसाना गांव नाम होने का कारण – श्री वृषभानु महाराज जी, श्री नन्द महाराज जी अत्यंत स्नेह करते थे। श्री नंद महाराज जब गोकुल में निवास कर रहे थे। तब वृषभानु महाराज गोकुल के निकट रावल गाँव में निवास कर रहे थे। श्री नंद महाराज जब श्री कृष्ण की सुरक्षा के लिए गोकुल से यमुना नदी पार कर नंदगाँव में आकर निवास करने लगे थे। यह सुनकर श्री वृषभानु महाराज भी रावल गाँव से आकर नंदगाँव निवास करने लगे थे।

श्री वृषभानु महाराज जिस पर्वत पर निवास किया था। उस पर्वत का नाम भानुगढ़ पड़ा एवं इस पर्वत का दूसरा नाम ब्रहागिरि पर्वत भी है। उनके इस गाँव में निवास करने के कारण ही इस गाँव का नाम बरसाना गाँव पड़ा। जिस स्थान पर वृषभानु जी बैठे थे। उस स्थान पर श्री राधा रानी मंदिर स्थित है। इस मंदिर में श्री राधा रानी के विग्रह की नित्य सेवा पूजा होती है। ब्रजधाम में जितने भी मंदिर है। उनमें से श्री राधा रानी का मंदिर सर्वोपरि है। मंदिर में प्रवेश की सीडिया सुन्दर पत्थरों से बनी हुई है। श्री कृष्ण जी ने अपने बचपन में अपने सखाओं के साथ जिस प्रकार सुन्दर खेल नंदगाँव में खेले थे। उसी प्रकार श्री राधा जी भी अपनी प्रिय सखियों के साथ बरसाने में खेल खेली थी। श्री जी मंदिर के सामने एक विशालकाय प्रागण है। यहाँ हर साल होली खेल के कीर्तन, झुलन कीर्तन, मधुमंगल के खेल अनुष्ठान होते रहते है।

 

बरसाने की होली

होली एक खेल के जैसा होता है। जिस प्रकार हम खेल खेलते है। उस ही प्रकार से इस खेल में दो दल होते है। दोनों दलों के हाथ में गुलाल एवं रंग भरी पिचकारी होती है। एक दल दूसरे दल पर रंग फेकते है। तब दूसरा दल पहले दल पर जबरदस्त तरीके से रंग फेकता है। आपस में खेले गये इस खेल को ही होली कहते है। यह खेल सर्वप्रथम श्री राधा कृष्ण एवं उनके सखाओं और सखियों के बीच खेला गया था। अब इस खेल को हम लोग खेलते है। बरसाने की होली सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। फागुन महीने के शुक्ल पछ नवमी तिथि में यह खेल होता है।

 

बरसाने की होली देखने के लिये बहुत अधिक संख्या में लोग आते है। उसी दिन साये नंदगांव से आये होली की मतवाले ग्वालों के साथ बरसाने की गोपिया लठमार होली खेलती है। यह होली बड़ी ही प्रसिद्ध है। इसके दूसरे दिन यहाँ के गोप नंदगांव में जाकर फिर से नंदगाँव की गोपियों के साथ लठमार होली खेलते है। यह खेल बरसाने की जिस गली में खेला जाता है। उस गली को रंगीली गली कहते है। यह खेल इतना आकर्षक है। जो लोग एक बार इस खेल को देख लेते है। वह दुबारा इस खेल को देखने के लिए लालायित रहते है।

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