हिंदू धर्म में एकादशी तिथि बहुत ही पुण्य फलदायी तिथि मानी जाती है। प्रत्येक मास में एकादशी तिथि दो बार आती है। इसके अनुसार प्रत्येक वर्ष में 24 एकादशी व्रत तिथियां आती हैं। लेकिन अधिक मास की एकादशियों के साथ इनकी संख्या 26 हो जाती है। हिंदू पंचाग की ग्यारहवीं तिथि एकादशी कहलाती है। इस तिथि का नाम ग्यारस या ग्यास भी है। यह तिथि चंद्रमा की ग्यारहवीं कला है, इस कला में अमृत का पान उमादेवी करती हैं। एकादशी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 121 डिग्री से 132 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में एकादशी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 301 से 312 डिग्री अंश तक होता है। एकादशी तिथि के स्वामी विश्वेदेवा को माना गया है। संतान, धन-धान्य और घर की प्राप्ति के लिए इस तिथि में जन्मे जातकों को विश्वेदेवा की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
एकादशी तिथि का योग
यदि एकादशी तिथि रविवार और मंगलवार को पड़ती है तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा एकादशी तिथि शुक्रवार को होती है तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। यदि किसी भी पक्ष में एकादशी सोमवार के दिन पड़ती है तो क्रकच योग बनाती है, जो अशुभ होता है, जिसमें शुभ कार्य निषिद्ध होते हैं। बता दें कि एकादशी तिथि नंदा तिथियों की श्रेणी में आती है। वहीं किसी भी पक्ष की एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करना शुभ माना जाता है।
एकादशी की उत्पत्ति
एकादशी व्रत का आरंभ उत्पन्न एकादशी को माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार मुर नामक दैत्य ने बहुत आतंक मचा रखा था यहां तक कि स्वयं विष्णु ने भी उसके साथ युद्ध किया लेकिन लड़ते लड़ते उन्हें नींद आने लगी और युद्ध किसी नतीजे पर नहीं पंहुचा, जब विष्णु शयन के लिये चले गये तो मुर ने मौके का फायदा उठाना चाहा लेकिन भगवान विष्णु से ही एक देवी प्रकट हुई और उन्होंने मुर के साथ युद्ध आरंभ कर दिया। इस युद्ध में मुर मूर्छित हो गया जिसके पश्चात उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। वह तिथि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की तिथि थी। मान्यता है कि भगवान विष्णु से एकादशी ने वरदान मांगा था कि जो भी एकादशी का व्रत करेगा उसका कल्याण होगा, मोक्ष की प्राप्ति होगी। तभी से प्रत्येक मास की एकादशी का व्रत की परंपरा आरंभ हुई।
प्रमुख एकादशी व्रत
वैसे तो सभी एकादशी व्रत पुण्य फलदायी और मोक्ष प्रदान करने वाले होते हैं फिर भी कुछ एकादशियां बहुत ही कल्याणकारी मानी जाती हैं। इनमें ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष में आने वाली निर्जला एकादशी एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली देवोत्थान एकादशी बहुत ही अधिक सौभाग्यशाली मानी जाती हैं।
एकादशी व्रत 2022 में कब हैं?
पौष पुत्रदा एकादशी (पौष शुक्ल एकदशी) – जनवरी 13, 2022, बृहस्पतिवार
षटतिला एकादशी (माघ कृष्ण एकादशी) – जनवरी 28, 2022, शुक्रवार
जया एकादशी (माघ शुक्ल एकादशी) – फरवरी 12, 2022, शनिवार
विजया एकादशी (फाल्गुन कृष्ण एकादशी) – फरवरी 26, 2022, शनिवार
आमलकी एकादशी (फाल्गुन शुक्ल एकादशी) – मार्च 14, 2022, सोमवार
पाप मोचिनी एकादशी (चैत्र कृष्ण एकादशी) – मार्च 28, 2022, सोमवार
कामदा एकादशी (चैत्र शुक्ल एकादशी) – अप्रैल 12, 2022, मंगलवार
वरुथिनी एकादशी (वैशाख कृष्ण एकादशी) – अप्रैल 26, 2022, मंगलवार
मोहिनी एकादशी (वैशाख शुक्ल एकादशी) – मई 12, 2022, बृहस्पतिवार
अपरा एकादशी (ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी) – मई 26, 2022, बृहस्पतिवार
निर्जला एकादशी (ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी) – जून 10, 2022, शुक्रवार
योगिनी एकादशी (आषाढ़ कृष्ण एकादशी) – जून 24, 2022, शुक्रवार
देवशयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ल एकादशी) – जुलाई 10, 2022, रविवार
कामिका एकादशी (श्रावण कृष्ण एकादशी) – जुलाई 24, 2022, रविवार
श्रावण पुत्रदा एकादशी (श्रावण शुक्ल एकादशी) – अगस्त 8, 2022, सोमवार
अजा एकादशी (भाद्रपद कृष्ण एकादशी) – अगस्त 23, 2022, मंगलवार
परिवर्तिनी/पार्श्व एकादशी (भाद्रपद शुक्ल एकादशी) – सितम्बर 6, 2022, मंगलवार
इंदिरा एकादशी (आश्विन कृष्ण एकादशी) – सितम्बर 21, 2022, बुधवार
पापांकुश एकादशी (आश्विन शुक्ल एकादशी) – अक्टूबर 6, 2022, बृहस्पतिवार
रमा एकादशी (कार्तिक कृष्ण एकादशी) – अक्टूबर 21, 2022, शुक्रवार
प्रबोधिनी/देवउठनी/देवोत्थान एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी) – नवम्बर 4, 2022, शुक्रवार
उत्पन्ना एकादशी (मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी) – नवम्बर 20, 2022, रविवार
मोक्षदा एकादशी (मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी) – दिसम्बर 3, 2022, शनिवार